Sex positions banned in Islam images: इस्लाम, एक ऐसा धर्म है जो जीवन के हर पहलू पर ध्यान केंद्रित करता है, जिसमें व्यक्तिगत संबंधों से लेकर सामाजिक, आर्थिक और आध्यात्मिक जीवन तक शामिल हैं। इस्लामिक शरिया कानून में विवाह और परिवार के संबंधों को बहुत महत्व दिया गया है, जिसमें पति-पत्नी के बीच शारीरिक संबंधों के बारे में भी कुछ स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं। आज की इस पोस्ट में उन निर्देशों और सेक्स पोसिशन्स के बारे में जानते हैं जो इस्लाम में निषिद्ध हैं |
Table of Contents
- Sex positions banned in Islam images
- 1. गधा मुद्रा (Anal Sex)
- 2. महिला की पीठ के बल पोजीशन (Missionary Position)
- 3. प्राकृतिक संबंध के अलावा अन्य पोजीशन्स
- 4. पब्लिक प्लेस में शारीरिक संबंध
- 5. यौन हिंसा या बलात्कार
- 6. शारीरिक संबंधों में असमानता या अपमानजनक व्यवहार
- इस्लाम में शारीरिक संबंधों के बारे में सामान्य दिशा-निर्देश:
- 69 पोजीशन क्या है?
- इस्लाम में 69 पोजीशन के बारे में क्या कहा गया है?
Sex positions banned in Islam images
इस्लाम, एक ऐसा धर्म है जो जीवन के हर पहलू पर ध्यान केंद्रित करता है, जिसमें व्यक्तिगत संबंधों से लेकर वैवाहिक, सामाजिक, आर्थिक और आध्यात्मिक जीवन तक शामिल हैं। इस्लामिक शरिया कानून में विवाह और परिवार के संबंधों को बहुत महत्व दिया गया है, जिसमें पति-पत्नी के बीच शारीरिक संबंधों के बारे में भी कुछ स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं। आज की इस पोस्ट में उन निर्देशों और सेक्स पोसिशन्स (Sex positions ) के बारे में जानते हैं जो इस्लाम में निषिद्ध हैं |
हालांकि, इस्लाम में सेक्स को केवल एक शारीरिक क्रिया के रूप में नहीं देखा जाता है, बल्कि इसे एक पवित्र कार्य माना जाता है, जो पति और पत्नी के बीच प्यार, सम्मान और समझ को बढ़ाता है। लेकिन, इस्लाम में कुछ शारीरिक संबंधों और सेक्स पोजीशन्स (Sex positions ) पर पाबंदी भी है, और इस लेख में हम उन पोजीशन्स के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे जो इस्लाम में अवांछनीय मानी जाती हैं।
1. गधा मुद्रा (Anal Sex)
इस्लाम में गधा मुद्रा, यानी गुदा मैथुन, को पूरी तरह से निषिद्ध (हराम) माना गया है। इस्लामिक शिक्षाओं के अनुसार, शारीरिक संबंध केवल एक पुरुष और महिला के बीच जननांगों से होना चाहिए। गुदा मैथुन को शारीरिक और मानसिक रूप से हानिकारक माना जाता है और इसे इस्लाम में एक गुनाह के रूप में देखा जाता है।
2. महिला की पीठ के बल पोजीशन (Missionary Position)
हालांकि महिला की पीठ के बल पोजीशन इस्लाम में पूरी तरह से निषिद्ध नहीं है, लेकिन इसे एक निश्चित तरीके से किया जाना चाहिए। इस पोजीशन में पति-पत्नी के बीच शारीरिक संबंधों का उद्देश्य केवल शारीरिक संतुष्टि नहीं, बल्कि एक गहरी आध्यात्मिक जुड़ाव और परस्पर सम्मान होना चाहिए। इस पोजीशन में भी यदि कोई अत्यधिक या असमान्य व्यवहार हो तो यह शरिया कानून के खिलाफ हो सकता है।
3. प्राकृतिक संबंध के अलावा अन्य पोजीशन्स
इस्लाम में जो पोजीशन्स (Sex positions ) पति और पत्नी के बीच परस्पर सम्मान, प्यार और स्नेह का संकेत देती हैं, वही स्वीकार्य हैं। कई सेक्स पोजीशन्स जैसे कि वह जो प्रकृति के खिलाफ या असुरक्षित मानी जाती हैं, जैसे किसी बाहरी उपकरण का प्रयोग या अनुशासनहीन पोजीशन्स, उन्हें शरिया में हानिकारक और अवैध माना जा सकता है।
4. पब्लिक प्लेस में शारीरिक संबंध
इस्लाम में सार्वजनिक स्थानों पर शारीरिक संबंध बनाना पूरी तरह से निषिद्ध है। ऐसा करना न केवल इस्लामिक आचार संहिता का उल्लंघन है, बल्कि यह सामाजिक दृष्टिकोण से भी गलत माना जाता है। इस्लाम में शारीरिक संबंध केवल वैवाहिक दायरे में और एक निजी स्थान पर होना चाहिए, जिससे दोनों पक्षों की गरिमा और सम्मान बना रहे।
5. यौन हिंसा या बलात्कार
इस्लाम में यौन हिंसा या बलात्कार को पूरी तरह से नकारा गया है। यद्यपि इस्लाम में सेक्स के दौरान एक निश्चित प्रकार की मर्यादा बनाए रखने का निर्देश दिया गया है, लेकिन किसी भी प्रकार की जबरदस्ती, मानसिक या शारीरिक हिंसा को पूरी तरह से निषिद्ध और पाप माना गया है। यह न केवल धार्मिक दृष्टि से, बल्कि मानवाधिकारों के खिलाफ भी है।
6. शारीरिक संबंधों में असमानता या अपमानजनक व्यवहार
किसी भी पोजीशन (Sex positions ) में शारीरिक संबंध बनाते समय, इस्लाम में यह जरूरी है कि दोनों पति-पत्नी एक-दूसरे के साथ सम्मान और समझ के साथ पेश आएं। किसी भी प्रकार की अपमानजनक, असमान या अपवित्रता से भरी हुई स्थिति, जैसे कि शारीरिक हिंसा या शारीरिक अपमान, को इस्लाम में गलत माना जाता है।
इस्लाम में 69 पोजीशन और उसकी स्थिति:
इस्लाम, एक धर्म है जो न केवल आध्यात्मिक जीवन, बल्कि व्यक्तिगत और पारिवारिक संबंधों पर भी गहरी नज़र रखता है। विवाह, शारीरिक संबंध और पारिवारिक जीवन को इस्लाम में बहुत महत्व दिया गया है। हालांकि शारीरिक संबंध एक प्राकृतिक और महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, इस्लाम ने उन संबंधों के लिए कुछ दिशानिर्देश और नियम तय किए हैं। इन दिशानिर्देशों के अंतर्गत यह निर्धारित किया गया है कि क्या सही है और क्या गलत है, और क्या पवित्र है और क्या अवैध (हराम) है।
69 पोजीशन, जो आमतौर पर शारीरिक संबंधों के दौरान एक विशिष्ट स्थिति के रूप में जानी जाती है, एक ऐसा विषय है जिस पर इस्लामिक विद्वानों के बीच विभिन्न दृष्टिकोण हो सकते हैं। इस लेख में हम इस विषय पर विस्तार से चर्चा करेंगे और जानेंगे कि इस्लाम में इस पोजीशन (Sex positions ) को लेकर क्या दृष्टिकोण है।
इस्लाम में शारीरिक संबंधों के बारे में सामान्य दिशा-निर्देश:
इस्लाम में शारीरिक संबंधों को केवल शारीरिक संतुष्टि के रूप में नहीं देखा जाता। इसे एक पवित्र कर्तव्य और एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी के रूप में देखा जाता है, जिसे पति और पत्नी के बीच प्रेम, सम्मान और विश्वास को बढ़ाने के लिए होना चाहिए। शारीरिक संबंधों के दौरान पति और पत्नी को एक-दूसरे की इज्जत और मर्यादा का पालन करना अनिवार्य है। इस्लाम में इस बात पर जोर दिया गया है कि शारीरिक संबंध हमेशा प्राकृतिक तरीके से और एक दूसरे की सहमति से होने चाहिए।
69 पोजीशन क्या है?
69 पोजीशन एक प्रकार की शारीरिक स्थिति है, जहां दोनों पार्टनर एक-दूसरे के जननांगों को मौखिक रूप से उत्तेजित करते हैं, जबकि दोनों पार्टनर एक दूसरे के विपरीत दिशा में उल्टे लेटे होते हैं। यह पोजीशन आमतौर पर मौखिक सेक्स के रूप में संदर्भित होती है, और इसमें दोनों पार्टनर एक-दूसरे के साथ समान रूप से उत्तेजना की प्रक्रिया में शामिल होते हैं।
इस्लाम में 69 पोजीशन के बारे में क्या कहा गया है?
इस्लामिक शरिया में शारीरिक संबंधों को लेकर कुछ स्पष्ट सीमाएँ हैं, जिनका उद्देश्य दोनों पार्टनर्स के लिए एक सम्मानजनक और संतोषजनक अनुभव सुनिश्चित करना है। शारीरिक संबंधों को पवित्र माना जाता है, लेकिन यह केवल प्राकृतिक तरीके से और शारीरिक रूप से सुरक्षित होना चाहिए। इस्लाम में कुछ विशेष शारीरिक क्रियाओं पर पाबंदी है, जैसे कि गुदा मैथुन (गधा पोजीशन), जबकि मौखिक सेक्स के बारे में इस्लामिक विद्वानों के बीच विभिन्न राय हो सकती हैं।
- मौखिक सेक्स:
मौखिक सेक्स, जिसमें 69 पोजीशन भी शामिल है, के बारे में इस्लामिक विद्वानों की राय मिश्रित है। कुछ विद्वानों का मानना है कि यह हराम है, क्योंकि इसे शारीरिक संबंध के दौरान प्राकृतिक मार्गों से बाहर की क्रिया माना जाता है। वहीं, कुछ अन्य विद्वानों के अनुसार, यदि यह शारीरिक संबंध की सीमाओं में रहते हुए दोनों पार्टनर्स की सहमति से किया जाता है और इसमें किसी प्रकार की अशुद्धि या अनुचित क्रिया नहीं होती, तो यह स्वीकार्य हो सकता है। - स्वीकृति और सहमति:
इस्लाम में शारीरिक संबंधों के दौरान सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि दोनों पार्टनर्स की सहमति होनी चाहिए। यदि दोनों पार्टनर इस प्रकार के किसी कृत्य पर सहमत हैं, तो इसे एक पवित्र संबंध के रूप में देखा जा सकता है, बशर्ते वह इस्लामिक सीमाओं के भीतर हो। - स्वच्छता और पवित्रता:
इस्लाम में शारीरिक संबंधों (Sex positions ) को हमेशा स्वच्छता और पवित्रता के साथ करने की सलाह दी जाती है। अगर किसी पोजीशन या शारीरिक क्रिया में अशुद्धि या गंदगी की संभावना हो, तो उसे अवांछनीय माना जाएगा। इसलिए, किसी भी प्रकार के मौखिक या अन्य शारीरिक संपर्क में स्वच्छता बनाए रखना महत्वपूर्ण है।
कामसूत्र: भारतीय संस्कृति का ऐतिहासिक धरोहर
परिचय:
कामसूत्र, एक प्राचीन भारतीय ग्रंथ है जिसे महर्षि वात्सायन ने लिखा था। यह केवल शारीरिक संबंधों से संबंधित नहीं है, बल्कि जीवन के समग्र दृष्टिकोण से जुड़ा हुआ है। काम, धर्म, और आर्थ का संतुलन बनाए रखने के बारे में यह ग्रंथ महत्वपूर्ण शिक्षाएँ देता है। भारतीय संस्कृति में यह एक ऐतिहासिक धरोहर के रूप में जाना जाता है, जो न केवल शारीरिक संबंधों को समझाता है, बल्कि जीवन के विभिन्न पहलुओं, जैसे प्यार, संबंध, समाज और नैतिकता को भी समझाता है।
कामसूत्र का इतिहास:
कामसूत्र का इतिहास लगभग 2000 साल पुराना है और यह संस्कृत भाषा में लिखा गया था। इसे महर्षि वात्सायन ने “कामसूत्र” के नाम से संकलित किया, जिसमें उन्होंने शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक प्रेम के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की है। इस ग्रंथ में कुल 7 हिस्से होते हैं और हर हिस्से में जीवन के विभिन्न पहलुओं को विस्तार से समझाया गया है।
कामसूत्र के प्रमुख अंश:
- काम (केंद्रित मनोवृत्ति):
- कामसूत्र का सबसे महत्वपूर्ण पहलू “काम” यानी प्रेम, आकर्षण और शारीरिक संबंध है। इसमें यह बताया गया है कि शारीरिक संबंधों को केवल शारीरिक संतुष्टि के रूप में नहीं देखना चाहिए, बल्कि इसे मानसिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से भी समझना चाहिए।
- इसमें प्रेम और प्यार के महत्व पर जोर दिया गया है, और बताया गया है कि शारीरिक संबंधों का उद्देश्य सिर्फ सुख प्राप्ति नहीं है, बल्कि दोनों व्यक्तियों के बीच गहरे संबंधों का निर्माण करना है।
- संभोग पोजीशन्स:
- कामसूत्र में शारीरिक संबंधों के लिए विभिन्न प्रकार की पोजीशन्स का वर्णन किया गया है। इन पोजीशन्स का उद्देश्य केवल शारीरिक संतुष्टि नहीं है, बल्कि एक दूसरे के साथ भावनात्मक और मानसिक संबंध भी मजबूत करना है।
- इन पोजीशन्स को कला की तरह प्रस्तुत किया गया है, जिसमें पुरुष और महिला दोनों की शारीरिक और मानसिक स्थिति का ख्याल रखा गया है।
- प्यार और रोमांस:
- कामसूत्र सिर्फ शारीरिक संबंधों से संबंधित नहीं है, बल्कि इसमें प्यार और रोमांस के विभिन्न पहलुओं का भी जिक्र किया गया है। यह बताया गया है कि प्रेम और संबंधों को मजबूत बनाने के लिए सिर्फ शारीरिक संबंध ही पर्याप्त नहीं हैं, बल्कि भावनात्मक समझ और रोमांटिक रिश्ते का भी निर्माण करना आवश्यक है।
- दांपत्य जीवन और समाज:
- कामसूत्र में यह भी बताया गया है कि शादी और दांपत्य जीवन को कैसे संतुलित रखा जा सकता है। इसमें दंपति को एक दूसरे के अधिकार, कर्तव्यों और जिम्मेदारियों का पालन करने की सलाह दी गई है, ताकि उनके रिश्ते में संतुलन और प्यार बना रहे।
- आध्यात्मिकता और सेक्स:
- कामसूत्र केवल भौतिक सुख तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें आध्यात्मिकता को भी जोड़ा गया है। इसमें यह बताया गया है कि शारीरिक संबंध भी एक प्रकार की साधना हो सकती है, जिसमें दोनों व्यक्तियों के बीच एक गहरी आत्मीयता और जुड़ाव महसूस होता है।
कामसूत्र का सामाजिक दृष्टिकोण:
कामसूत्र ने समाज में शारीरिक और मानसिक प्रेम की भूमिका को विस्तार से बताया। इसमें यह कहा गया है कि प्रेम और शारीरिक संबंध समाज के भीतर एक सकारात्मक और संतुलित दृष्टिकोण से होने चाहिए। इसे किसी भी तरह की शर्म या ग़लत भावना से नहीं जोड़ा गया, बल्कि इसे जीवन के एक प्राकृतिक और महत्वपूर्ण पहलू के रूप में देखा गया है।
कामसूत्र का आधुनिक जीवन में महत्व:
आज के आधुनिक समय में कामसूत्र को केवल एक प्राचीन सेक्स गाइड के रूप में देखा जाता है, लेकिन इसकी वास्तविकता इससे कहीं अधिक है। यह एक ऐसा ग्रंथ है जो न केवल शारीरिक संबंधों, बल्कि जीवन के विविध पहलुओं को समझने में मदद करता है। रिश्तों में संतुलन, विश्वास, और प्यार के महत्व को आज भी समझने में कामसूत्र की शिक्षाएँ मददगार हैं।
निष्कर्ष:
इस्लाम में शारीरिक संबंधों को लेकर एक स्पष्ट और संतुलित दृष्टिकोण है। शारीरिक संबंधों का उद्देश्य केवल शारीरिक संतुष्टि नहीं होता, बल्कि यह पति-पत्नी के बीच एक भावनात्मक, मानसिक और आध्यात्मिक जुड़ाव को बढ़ाने का एक माध्यम होता है। 69 पोजीशन जैसी कुछ शारीरिक क्रियाओं के बारे में इस्लामिक विद्वानों की राय मिश्रित है, और यह इस पर निर्भर करता है कि वे उस कृत्य को इस्लामिक सिद्धांतों के अनुरूप मानते हैं या नहीं।
अंततः, यदि कोई पोजीशन दोनों पार्टनर्स की सहमति से और इस्लामिक नियमों और स्वच्छता के भीतर की जाती है, तो वह संभवतः स्वीकार्य हो सकती है। लेकिन, किसी भी प्रकार के शारीरिक संबंध को पवित्र, सम्मानजनक और स्वच्छ तरीके से ही करना चाहिए।